शेर जो मेरे नही, लेकिन मेरे दिल को छू गए. ऎसेही कुछ शेर आपके लिये.
मेरा दर्द भी वही था और मरहम भी वही था महफिल में इस बात से अनजान बचा भी वही था
कभी है ढेरों खुशियाँ तो, कभी गम बेहिसाब हैं...
इम्तिहानों से भरी जिन्दगी इसी लिए लाजवाब है...
तकदीर ही जला दी हमने ,जब जलानी थी,
अब धूऐ पर तमाशा कैसा, और राख पर बहस कैसी |
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