दर्द

मेरा दर्द भी वही था
और मरहम भी वही था
महफिल में इस बात से
अनजान बचा भी वही था

लाजवाब जिन्दगी

कभी है ढेरों खुशियाँ तो,
          कभी गम बेहिसाब हैं...

इम्तिहानों से भरी जिन्दगी
          इसी लिए लाजवाब है...

तकदीर

तकदीर ही जला दी हमने ,जब जलानी थी,

अब धूऐ  पर तमाशा कैसा, और राख पर बहस कैसी |

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