तकदीर

तकदीर ही जला दी हमने ,जब जलानी थी,

अब धूऐ  पर तमाशा कैसा, और राख पर बहस कैसी |

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मोहब्बत

मोहब्बत लिबास नहीं
जो हररोज़ बदला जाए
मोहब्बत कफन है
पहनकर उतारा नही जाता

तेरी बात

एक कलम थी,
एक रात थी,
लिखने को कुछ नही,
बस तेरी बात थी ।

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